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suryanamaskar (सूर्यनमस्कार) सम्पूर्ण व्यायाम

suryanamaskar (सूर्यनमस्कार) सम्पूर्ण व्यायाम

suryanamaskar (सूर्यनमस्कार) सम्पूर्ण व्यायाम

सूर्यनमस्कार सभी के लिए सुन्दर व्यायाम | सूर्यनमस्कार अपने आप में संपूर्ण व्यायाम | फिट रहने के लिए करें सूर्यनमस्कार |

  1. प्रस्तावना
  2. सूर्य का महत्व
  3. सूर्यनमस्कार : सभी के लिये सर्वांग सुन्दर व्यायाम
  4. सूर्यनमस्कार : एक आराधना
  5. सूर्यनमस्कार के लाभ
  6. सूर्यनमस्कार व श्वसन
  7. सूर्यनमस्कार के नाम
  8. सूर्यनमस्कार करने की पद्धति
  9. सूर्यनमस्कार सम्बन्धित अन्य जानकारियाँ
  10. सूर्यनमस्कार करने की पद्धति (चित्रों सहित)
  11. सांघिक सूर्यनमस्कार प्रतियोगिता

प्रस्तावना

योग का प्रादुर्भाव भारत में हजारों वर्ष पहले हुआ, यह हमारे ऋषि-मुनियों की देन है। आज योग मात्र आश्रमों और साधु संतों तक ही सीमित नहीं रह गया है, बल्कि पिछले कुछ वर्षों से इसने हमारे दैनिक जीवन में अपना स्थान बना लिया है। योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना, एक ऐसी पद्धति जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी अंतर्निहित शक्तियों को संग्रहित रूप से विकसित करके आत्मा को सर्वव्यापी परमात्मा से जोड़ सकता है।

सूर्य नमस्कार योगिक क्रियाओं में सबसे लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण है। जो आसन प्राणायाम और मुद्राओं का लाभ एकसाथ प्रदान करता है। जो लोग इस को पूर्ण एकाग्रता और तन्मयता के साथ मंत्रोच्चार सहित प्रार्थना व आराधना के भाव से करते हैं, उन्हें प्रत्याहार, धारणा और ध्यान के भी कुछ अंशों का लाभ मिल जाता है। इसमें दस स्थितियाँ होती हैं जो प्रातः काल उगते हुये सूर्य के समक्ष की जाती है।

सूर्य नमस्कार शरीर की सम्पूर्ण तंत्रिका-ग्रन्थि और तंत्रिका मांसपेशीय तंत्र को ऊर्जावान बनाता है तथा इसका नियमित अभ्यास पूरे शरीर में शुद्ध रक्त का संचार और सभी प्रणालियों में पूर्ण-समन्वय प्रदान करता है। इस प्रकार यह साधक को सम्पूर्ण आरोग्य, मानसिक और शारीरिक पुष्टता प्रदान करने के साथ आध्यात्मिक लाभ भी प्रदान करता है।

सूर्य का महत्व :-

surya ka mahatva

सूर्यनमस्कार के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने से पहले सूर्य का महत्त्व जान लेना अति आवश्यक है। सूर्य प्रत्यक्ष दिखायी देने वाले भगवान हैं। सूर्य के दर्शन मात्र से मन प्रसन्न होकर बुद्धि तेजस्वी एवं प्रतिभा संपन्न होती है व तेज एवं शक्ति शरीर में प्रवेश करती है। सूर्य की किरणों से कीटाणुओ का नाश होकर हवा शुद्ध होती है। सूर्य के कारण ही जल का वाष्प में परिवर्तन होकर वर्षा

होती है। सूर्य के कारण ही वनस्पती, वृक्ष, पशु-पक्षी, मनुष्य, प्राणी इन सबका अस्तित्व है। सूर्य के कारण ही हमें प्रकृति पत्ते, फूल, फल, सब्जियाँ, धन-धान्य भरपूर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। हमारा सारा जीवन इसी पर निर्भर है। संपूर्ण प्रकृति का चक्र सूर्य पर ही निर्भर है।

इस प्रकार सूर्य के हम पर अनेक उपकार हैं। इसी कारण रथसप्तमी के दिन सूर्य की पूजा की जाती है। सूर्य द्वारा किये जा रहे अनेक उपकारो को चुकाने के लिये प्रतिदिन कमसे कम 13 सूर्यनमस्कार कर के उनके चरणों में अपनी भाववंदना अर्पण की जा सकती है।

सूर्यनमस्कार : सभी के लिये सर्वांग सुन्दर व्यायाम :-

सूर्यनमस्कार : सभी के लिये सर्वांग सुन्दर व्यायाम

सूर्यनमस्कार भारतीयों के लिये एक पूर्व परिचित सर्वांग सुन्दर व्यायाम है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिये पूर्वजों द्वारा दी गयी अमूल्य धरोहर है।

आजकल की भागदौड एवं स्पर्धात्मक जीवन शैली में व्यायाम के लिये आवश्यक समय निकाल पाना हर एक के लिये संभव नहीं है। बैठी जीवन शैली, कम्प्यूटर के सामने घन्टो बैठे काम करना, खाने में फास्ट फूड्स का प्रयोग, अधिकाधिक अंक या धन प्राप्त करने के प्रयासों में आने वाला तनाव और व्यायाम के अभाव में तरूणाई में उच्च रक्तदाब, मधुमेह, हृदयविकार, संधिवात, मानसिक दुर्बलता ऐसी अनेक बीमारियाँ बढती जा रही हैं। इन सबसे छुटकारा पाने के लिये प्रतिदिन कम से कम 13 सूर्यनमस्कार करना एक रामबाण इलाज है।

सूर्यनमस्कार : एक आराधना :-

व्यायाम के बहुत प्रकार हैं। कई लोग अपनी अपनी पद्धति को निष्ठा एवं श्रद्धा से स्वीकार करते हैं। जागतिक स्तर पर योगशास्त्र पर प्रयोग एवं शोध शुरू हो चुके है। सूर्यनमस्कार पर भी इस प्रकार के प्रयोग एवं शोध चल रहे हैं।

जिसप्रकार संगीत क्षेत्र में गीत गानेवालों की नाद समाधी लगती है या गीत में खो जाते हैं उसी प्रकार किसी काम में सबकुछ भूल जाना (तन मन से लगना) या तैरते समय किसी भी प्रकार का कष्ट न होते हुये शरीर को हलका अनुभव करते हुये गति से तैरना संभव होता है, उसी प्रकार का अनुभव सूर्यनमस्कार करने से होता है। बतौर संज्ञा उसे ‘flow-state’ कहते हैं। लेकिन यह स्थिति प्राप्त करने के लिये व्यक्ति को निष्ठा एवं श्रद्धा से कार्य करना होता है। इसी को ही आराधना कहते हैं।

निष्ठा एवं श्रद्धा से प्रतिदिन सूर्यनमस्कार करना एक आराधना ही है। यह बात ध्यान देने योग्य है की सूर्यभगवान की इस आराधना में जाति, धर्म, पंथ इत्यादि का बंधन आडे नहीं आता है और इसी कारण सूर्यनमस्कार व्यायाम को आराधना का महत्व प्राप्त है। सारी दुनिया इस उपासना पद्धति को स्वीकार भी करती है। जैसे-जैसे विज्ञान की उन्नति होगी सूर्यनमस्कार का महत्त्व दुनिया के सामने और अधिक स्पष्ट होता जायेगा। आवश्यक यह है की प्रत्येक व्यक्ति द्वारा इसका अनुभव किया जावे एवं इसका प्रचार-प्रसार किया जावे।

सूर्यनमस्कार के लाभ :-

suryanamaskar ke labh

इससे शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास होता है। शरीर में संयम आकर अहंकार में कमी आती है। तेज और शक्ति का संचार होता है। शरीर के सभी अवयव, जोड एवं मांस पेशियों कार्यक्षम होकर शरीर लचीला एवं मजबूत बनता है। दीर्घायु प्राप्त होती है, मन एकाग्रचित्त होता है व शरीर निरोगी रहता है। उत्तम स्वास्थ्य का मतलब है शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक स्वास्थ्य और यह प्रतिदिन सूर्यनमस्कार करने से प्राप्त होता है। एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है।

बिना किसी साधन के गरीब, अमीर, व्यापारी, कर्मचारी, विद्यार्थी, वैज्ञानिक आदि प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति किसी भी खुले स्थान पर घर की छत पर भी कर सकता है। इसको करने से विद्यार्थियों की स्मरण शक्ति बढ़ जाती है जिससे उन्हें परीक्षा परिणाम तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में आशातीत सफलता मिलती है। खिलाड़ियों को भी सूर्यनमस्कार कराने से उनके शरीर में लचीलापन, शक्ति एवं मानसिक क्षमता का विकास होता है।

सूर्य नमस्कार करने से शारीरिक व मानसिक क्षमता के साथ-साथ 100 वर्ष तक निरोगी जीवन जिया जा सकता है, इसका वर्णन श्री मोरार जी देसाई ने अपनी जीवनी में किया है जो स्वयं भी प्रतिदिन सूर्यनमस्कार करते थे। इसी प्रकार छत्रपति शिवाजी के गुरू समर्थ गुरू रामदास भी प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते थे तथा अन्य सभी से आग्रह करते थे।

सूर्यनमस्कार व श्वसन :-

सूर्यनमस्कार में श्वसन का अत्यंत महत्व है। श्वसन का रक्तशुति एवं रक्तसंचार से सीधा संबंध है। श्वसन नाक से ही करें तथा वह शांत एवं लयबद्ध हो। श्वसन की तीन कियांये होती हैं-

1) पूरक – श्वास लेना,

2) रेचक – श्वास छोडना,

3) कुंभक – श्वास रोकना

सूर्यनमस्कार की दस स्थितियों में श्वसन निम्नानुसार करें :-

स्थिति : एक, तीन, छः, आठ (1, 3, 6, 8) में श्वास लेना है (पूरक)

स्थिति: दो, चार, सात, नौ (2, 4, 7, 9) में श्वास छोडना है (रचक)

स्थिति : पांच, दस (5, 10) मे श्वास रोकना है (कुंभक)

इन तीन क्रियाओं में फेफडों का पूर्ण क्षमता से उपयोग होता है, जिससे श्वसन का मार्ग खुलता है। प्रणायाम के सभी फायदे इसी से मिलते हैं।

suryanamaskar सूर्य के नाम : नाम मंत्र

1) ॐ मित्राय नमः ।

2) ॐ रवये नमः।

3) ॐ सूर्याय नमः ।

4) ॐ भानवे नमः ।

5) ॐ खगाय नमः ।

6) ॐ पूष्णे नमः ।

7) ॐ हिरण्यगर्भाय नमः ।

8) ॐ मरीचये नमः ।

9) ॐ आदित्याय नमः ।

10) ॐ सवित्रे नमः ।

11) ॐ अर्काय नमः ।

12) ॐ भास्कराय नमः ।

13) ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नमः।

सूर्यनमस्कार करने की पद्धति :-

सूर्यनमस्कार करने के लिये स्वच्छ व हवादार स्थान पर आराम की स्थिति में खडे रहें। आराम से सूर्यनमस्कार सिद्ध की स्थिति तीन अंको में पूर्ण करनी है (एक में सावधान की स्थिति, दो में पैरों को अंगूठों सहित मिलाना, तीन में दोनो हाथ सीने के सामने नमस्कार की स्थिति में)। इसके पश्चात ध्यान करते हुये “ध्येयः सदा सवितृ मंडल मध्यवर्ती” श्लोक का पठन करें।

इसके पश्चात श्वास भरते हुये पहला नाममंत्र बोलते हुये नमः के पश्चात शेष श्वास को नाक से निकाले । तत्पश्चात सूर्यनमस्कार की 10 स्थितियों में से 1, 3, 6, 8 में श्वास लेना (पूरक), 2, 4, 7, 9 में श्वास छोडना (रेचक), और अंक 5 एवं 10 में श्वास रोकना (कुंभक) के अनुसार श्वसन करें। इसी प्रकार दूसरा सूर्यनमस्कार करने से पूर्व पुनः श्वास भरते हुये दूसरा नाममंत्र बोलकर नमः के पश्चात शेष श्वास को नाक के द्वारा छोड़ें। इस प्रकार 13 सूर्यनमस्कार पूर्ण करने के पश्चात 3 से 5 बार दीर्घ श्वसन करें।

अन्त में “आदितस्य नमस्कारान ये कुर्वन्ति दिने दिने” यह फलप्राप्ति का श्लोक बोलकर 3 अंको में आराम की स्थिति में आयें।

सूर्यनमस्कार सम्बन्धित अन्य जानकारियाँ :-

सूर्यनमस्कार उम्र के आठवें वर्ष से मृत्युपर्यन्त सभी स्त्री पुरूष कर सकते हैं।

प्रारम्भ एक अथवा दो सूर्यनमस्कार से करते हुये अपनी अपनी शक्ति अनुसार तथा उम्र के आधार पर संख्या में वृद्धि कर सकते हैं। प्रतिदिन न्यूनतम 13 मंत्रों के साथ सूर्यनमस्कार करने ही चाहिये। किशोर एवं तरूण लडके-लडकियों को तो प्रतिदिन 13 से अधिक क्षमता अनुसार बढ़ाना चाहिए |

सूर्यनमस्कार दिन में कभी भी कर सकते हैं, लेकिन सूर्यनमस्कार करते समय पेट खाली होना आवश्यक है। सूर्योदय का समय सूर्यनमस्कार के लिये अति उत्तम होता है और उसके लाभ भी अधिक होते हैं। सूर्यास्त के समय भी सूर्यनमस्कार कर सकते हैं। सूर्योदय एवं सूर्यास्त को संधिकाल कहते हैं।

सूर्यनमस्कार खुली शुद्ध हवा में, स्वच्छ स्थान पर करने चाहिये।

1) घर में दुखःद घटना होने पर शोक समाप्ति तक।

2) बुखार होने पर, पेट साफ नहीं होने पर, सर या जोडो में दर्द होने

पर किसी भी प्रकार की बीमारी होने पर।

3) आखों की बीमारियाँ (रेटिनोपॅथी), मधुमेह (डायबिटीज). हृदयविकार, उच्च रक्तदाब होने पर चिकित्सक की सलाह के पश्चात ही सूर्यनमस्कार करें।

4) महिलायें मासिक धर्म की अवधि में, गर्भावस्था, प्रसूति काल तथा मोनोपॉज की अवधि में सूर्यनमस्कार नहीं करे।

5) तेज धूप तथा देर रात्रि में सूर्यनमस्कार नहीं करें।

सूर्यनमस्कार में ही प्राणायाम का समावेश है। सामान्य से 5-6 गुणा हवा शरीर में प्रविष्ट होने से कोशिकाओं में रासायनिक क्रियायें अच्छी होती हैं। पूरक, रेचक और कुंभक श्वसन से श्वासोच्छ्वास लयबद्ध होता है। इसी से रक्तसंचार तथा अन्य कियायें लयबद्ध होती हैं। अनैच्छिक कियाओं पर नियंत्रण रहता है। प्राणशक्ति नियंत्रण में होने के कारण स्वास्थ्य बना रहता है और रोगो का निवारण होता है एवं रक्तदाब, मानसिक विकार, रीढ की बीमारी और जोडों के विकार ठीक होते हैं। इस प्रकार सूर्य नमस्कार से प्राणायाम के समस्त लाभ प्राप्त होते हैं और स्वायत्त तंत्रिका तत्र पर नियत्रंण होकर इसके प्रभाव से मन पर नियन्त्रण किया जा सकता है।

सूर्यनमस्कार यह सात आसनों की एक मालिका है (उर्ध्वहस्तासन, हस्त पादासन, अर्धभुजंगासन, मकरासन, नमस्कारासन, भुजंगासन, त्रिकोणासन)। सूर्यनमस्कार करने से शरीर को स्थिरता प्राप्त होती है तथा सुख एवं आनंद का अनुभव होता है। योगासनो के समान ही सूर्यनमस्कार निरामय एवं दीर्घायु जीवन के लिये लाभकारी सिद्ध हुये हैं।

सूर्यनमस्कार करने की पद्धती (सभी के लिये सर्वांग सुन्दर व्यायाम)

प्रणामासन,नमस्कारासन

लाभ : सिद्धस्थिति में हाथ कि कलाई तथा पंजे मे 90 डीग्री का कोण बनने से कलाई एवं पंजो में तनाव उत्पन्न होता है। सीधे (तना हुआ) खडे रहने की आदत से रीढ की बीमारियाँ नहीं होती हैं। आत्मविश्वास बढता है। बाजू एवं कंधे की मांसपेशिया मजबूत होती हैं।

suryanamaskar ( पूर्वोत्तान आसान )

लाभ : रीढ को पीछे झुकाने से उत्पन्न होने वाले तनाव के कारण रीढ की हड्डी मजबूत होती है। घुटनो से लेकर गर्दन तक शरीर को आगे से तान मिलने के कारण पेट (तोंद) नहीं निकलती है। लम्बा श्वास लेने से फेफडे उत्तेजित होकर अधिक कार्यक्षम बनते हैं।

suryanamaskar (पाद हस्तासन )

लाभ : इस स्थिति में आगे से नीचे झुकने के कारण पीठ की सभी मांसपेशियों का उत्तम व्यायाम होता है। पेट पर दबाव बढ़ने से आंत, प्लिहा, यकृत की कार्यक्षमता बढती है। घुटनों को सीधे रखते हुये पंजों को जमीन पर टिकाने से कलाईयों का व्यायाम होता है। इस आसन को करने से गुर्दों की सक्रियता बढ़ती है।

suryanamaskar ( अश्वचालन आसन )

दाहिना पैर व दोनो पंजे जमीनपर स्थिर रखते हुये बाँया पैर पीछे लेकर जावें, घुटना बाँयें पैर का एवं सभी अगुलियाँ जमीनपर टिकी हुयी होनी चाहिये।

लाभ : इस स्थिति में पैरो की हलचल से टखना, घुटना, जंघा एवं पिंडली की मांसपेशियों का व्यायाम होने से उनकी कार्यक्षमता बढती है। घुटनों को मोडने से जोडो की हड्डियां मजबूत होती हैं।

suryanamaskar ( तोलासन )

लाम : इस स्थिति में रीढ़ की हड्डी सीधी तनी हुयी रहती है। पूरे शरीर का वजन कंधे एवं कलाई पर होने से उनकी ताकत में वृद्धि होती है |

suryanamaskar ( अष्टांग आसन )

लाभ : इस स्थिति में पेट ऊपर उठाने एवं ठुड्डी को सीने से चिपकाने से रीढ़ की हड्डी में दबाव बढकर उनकी मालिश होती है। कमर, गर्दन व हाथों की मांसपेशीयों पर तनाव आने से उनका व्यायाम होता है। पेट ऊपर उठाने से पेट के अंदर के अवयवो में खिचांव आता है। मूत्राशय, गर्भाशय, बड़ी आंत का आखरी हिस्से में खिचांव आता है। इससे बारबार लघुशंका जाने की शिकायत दूर होती है।

suryanamaskar ( भुजंगासन )

    लाभ : इस स्थिति मे शरीर भुजंग (साँप) की तरह होता है। इस स्थिति में कंठमणी से लेकर जंघा तक सीने की तरफ से खिचांव होता है, जिससे सीना, पेट, बाजु एवं जंघा की मांसपेशियां मजबूत बनती हैं। पेट की चरबी कम होती है। रीढ़ की हड्डी पर दबाव बढ़ने से रीढ मजबूत होती है। गर्दन, पीठ, कमर का दर्द कम होता है। इस स्थिति से रीढ़ की हड्‌डी में कॅल्शियम की मात्रा बढती है।

    suryanamaskar ( पर्वतासन )

      लाभ : इस स्थिति में शरीर का पूरा वजन कलाई एवं पैर के पंजो पर होता है। पीठ की ओर से शरीर का अच्छा खिचांव होता है। इनसे जुड़ी हुयी सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है। अधोमुखश्वानासन की स्थिति बनने से थकान दूर होती है। एडी की हड्डियां नरम होती हैं। टखने मजबूत बनते हैं। पैर सुंदर होते हैं। कंधो का संधिवात ठीक होता है। हृदय एवं दिमाग की कोशिकाओं को नवचैतन्य प्राप्त होता है। इस आसन को करने से शरीर में स्फूर्ति का संचार होता है।

      suryanamaskar (अश्वचालन आसन )

        लाभ : इस स्थिति में दोनो पैरों को समान अवसर देना आवश्यक है। इससे पैरों की मांसपेशियों का व्यायाम होने से पिंडलियों के स्नायु बलवान होते हैं। इसमे घुटनों का खुलना बंद होना सुसंगत होने से घुटनों के जोड मजबूत एवं कार्यक्षम होते हैं।

        suryanamaskar (पादहस्तासन)

          लाभ : यह स्थिति कमांक दो की स्थिति जैसी ही है। क्रमांक दो की स्थिति में मिलने वाले लाभ यहां भी मिलते हैं। पीठ की मांसपेशियों का अच्छा व्यायाम होता है। पेट की मांसपेशियों की कार्यक्षमता बढती है। कलाईयों का व्यायाम होने से कलाईयां मजबूत होती हैं।

          suryanamaskar (प्राणामासन )

          दसवी स्थिति

          लाभ : सिद्ध स्थिति के अनुसार। प्रत्येक सूर्यनमस्कार करने से पूर्व एक एक नाममंत्र बोलना चाहिये। इस प्रकार 13 समंत्र सूर्यनमस्कार करने के पश्चात फलप्राप्ति का श्लोक बोलना चाहिये।

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